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यू॒यं गा॑वो मेदयथा कृ॒शं चि॑दश्री॒रं चि॑त्कृणुथा सु॒प्रती॑कम्। भ॒द्रं गृ॒हं कृ॑णुथ भद्रवाचो बृ॒हद्वो॒ वय॑ उच्यते स॒भासु॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yūyaṁ gāvo medayathā kṛśaṁ cid aśrīraṁ cit kṛṇuthā supratīkam | bhadraṁ gṛhaṁ kṛṇutha bhadravāco bṛhad vo vaya ucyate sabhāsu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यू॒यम्। गा॒वः॒। मे॒द॒य॒थ॒। कृ॒शम्। चि॒त्। अ॒श्री॒रम्। चि॒त्। कृ॒णु॒थ॒। सु॒ऽप्रती॑कम्। भ॒द्रम्। गृ॒हम्। कृ॒णु॒थ॒। भ॒द्र॒ऽवा॒चः॒। बृ॒हत्। वः॒। वयः॑। उ॒च्य॒ते॒। स॒भासु॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:28» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों का क्या अवश्य कर्त्तव्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (यूयम्) आप लोग जो (गावः) वाणियाँ हैं उनको (मेदयथा) मधुर करिये (चित्) और (अश्रीरम्) अमङ्गलस्वरूप और अधर्माचरण करनेवाले को (कृशम्) क्षीण (कृणुथा) करिये और (चित्) भी (सुप्रतीकम्) उत्तम प्रतीति करानेवाले द्वार आदि जिसमें उस (भद्रम्) कल्याण करने शुद्ध वायु जल और वृक्षवाले (गृहम्) गृह को (कृणुथ) करिये और (सभासु) आप्त विद्वानों से प्रकाशमान सभाओं में (भद्रवाचः) जो कल्याण करनेवाली सत्यभाषण से युक्त वाणियाँ उनको स्वीकार करिये और जो (वः) आप लोगों का (बृहत्) बड़ा (वयः) जीवन (उच्यते) कहा जाता है, उसको करिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कोमल, सत्य, धर्मयुक्त वाणी तथा सर्व ऋतुओं में सुख करनेवाले घर को, सभा को और अधिक अवस्था को करते हैं, वे संसार में कल्याण करनेवाले होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किमवश्यं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यूयं या गावस्ता मेदयथा चिदश्रीरं कृशं कृणुथा चिदपि सुप्रतीकं भद्रं गृहं कृणुथ सभासु भद्रवाचो वरथ यद्वो बृहद्वय उच्यते तत्कृणुथ ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यूयम्) (गावः) वाचः (मेदयथा) स्नेहयथ स्निग्धा मधुराः कुरुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कृशम्) क्षीणम् (चित्) (अश्रीरम्) अश्लीलममङ्गलमधर्माचरणम् (चित्) अपि (कृणुथा) कुरुथ। अत्रापि संहितायामिति दीर्घः। (सुप्रतीकम्) शोभनानि प्रतीकानि प्रतीतिकराणि द्वारादीनि यस्मिंस्तम् (भद्रम्) भन्दनीयं कल्याणकरं शुद्धवायूदकवृक्षम् (गृहम्) (कृणुथ) (भद्रवाचः) या भद्राः कल्याणकर्यः सत्यभाषणान्विता वाचश्च ताः (बृहत्) महत् (वः) युष्माकम् (वयः) जीवनम् (उच्यते) (सभासु) आप्तैर्विद्वद्भिः प्रकाशमानासु ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः कोमलां सत्यां धर्म्यां वाचं सर्वर्त्तुसुखकरं गृहं सभां दीर्घमायुश्च कुर्वन्ति ते जगति कल्याणकरा भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे कोमल स्वभावाची, सत्यवादी, धार्मिक वाणी असलेली, सर्व ऋतूंमध्ये सुखकारक घरे व सभा निर्माण करून दीर्घायु होतात ती जगाचे कल्याण करणारी असतात. ॥ ६ ॥